क्या मीडिया में नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ हवा बदलने लगी है?

कोरोना महामारी की दूसरी लहर की वजह से पूरे देश में जो संकट पैदा हुआ है, उसमें कुछ पारंपरिक मीडिया संस्थानों और सोशल मीडिया पर भी ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ हवा बदलने लगी है। हालांकि, नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब से ही मीडिया का एक बड़ा वर्ग हमेशा उनके साथ खड़ा नजर आता था। जैसे-जैसे 2014 का लोकसभा चुनाव नजदीक आता गया, नरेंद्र मोदी के पक्ष में खबरें प्रकाशित और प्रसारित करने वाले मीडिया संस्थानों की संख्या बढ़ती गई। भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर जब नरेंद्र मोदी 2014 के लोकसभा चुनाव में उतरे तो उन्होंने सोशल मीडिया का भी बहुत अच्छे तरीके से अपने पक्ष में इस्तेमाल किया। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2014 में भाजपा को मिली चुनावी जीत में सोशल मीडिया की बहुत बड़ी भूमिका मानी गई।

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद मीडिया में उनका समर्थन और बढ़ता गया। पहले जो मीडिया संस्थान थोड़ा पर्दे में रहकर मोदी की प्रशंसा करते थे, वे खुलेआम नरेंद्र मोदी के गुणगान में लग गए। समाचार चैनलों में इंडिया टीवी, जी न्यूज, आज तक और रिपब्लिक जैसे संस्थानों ने लगातार मोदी के पक्ष में माहौल बनाए रखने की कोशिश की।

मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद सोशल मीडिया पर भी उनकी और भाजपा की पकड़ और मजबूत होती चली गई। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद जितने भी विधानसभा चुनाव हुए, सभी में भाजपा ने सोशल मीडिया और मुख्यधारा की मीडिया का इस्तेमाल एक हथियार के तौर पर किया। कुछ खास मुद्दों के पक्ष में माहौल बनाने के लिए और विपक्ष के मुद्दों के खिलाफ माहौल बनाने के लिए भाजपा ने सोशल मीडिया का बखूबी इस्तेमाल किया। 2019 में हुए लोकसभा चुनावों में भी भाजपा ने सोशल मीडिया का इस्तेमाल बहुत अच्छे से किया और पूरे चुनाव में सोशल मीडिया पर नरेंद्र मोदी छाए रहे।

लेकिन कोविड-19 की दूसरी लहर का मोदी सरकार ने जिस तरह से कुप्रबंधन किया उससे मीडिया और सोशल मीडिया में नरेंद्र मोदी के खिलाफ माहौल बनने लगा है। कभी नरेंद्र मोदी की जमकर प्रशंसा करने वाले मीडिया संस्थान अपना रुख बदल रहे हैं। वहीं सोशल मीडिया प्लेटफाॅर्म भी मोदी सरकार के खिलाफ खड़े नजर आ  रहे हैं। यही वजह है कि कभी सोशल मीडिया का जमकर इस्तेमाल करने वाले नरेंद्र मोदी की सरकार सोशल मीडिया कंपनियों को अपने हिसाब से काम करने के लिए मजबूर करने की कोशिश भी कर रही है।

कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने जब पूरे देश को अपनी गिरफ्त में लिया और लोगों की जान दवा, ऑक्सीज़न और अस्पताल बेड के अभाव में जाने लगी तो भी केंद्र सरकार और भाजपा की राज्य सरकारों ने यह स्वीकार नहीं किया कि स्थिति भयावह हो गई है। बल्कि जो लोग भी सच को सामने लाने की कोशिश कर रहे थे, न सिर्फ उनके खिलाफ कार्रवाई करने की कोशिश की गई बल्कि उनकी विश्वसनीयता पर भी सरकार ने सवाल खड़े किए।

दैनिक भास्कर ने कोरोना की दूसरी लहर में अपनी रिपोर्टिंग से लगातार सरकार को आईना दिखाने की कोशिश की। दैनिक भास्कर की पहचान ऐसे अखबार की नहीं रही है जो सरकार से दो-दो हाथ करे। मौजूदा कोरोना संकट के पहले दैनिक भास्कर ने भी लगातार नरेंद्र मोदी के पक्ष में रिपोर्टिंग की है। भास्कर समूह का गुजराती अखबार दिव्य भास्कर ने भी इस संकट में सही और तथ्यपरक रिपोर्टिंग के जरिए मोदी सरकार के कामकाज पर सवाल उठाने का काम किया। साथ ही इस अखबार ने गुजरात में मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के खिलाफ भी लगातार रिपोर्टिंग की और लोगों को यह बताने का काम किया कि किस तरह से कोरोना की समस्या से निपटने में केंद्र की मोदी सरकार और गुजरात की रूपाणी सरकार नाकाम रही है। मौत की आंकड़ों को लेकर दिव्य भास्कर ने गुजरात की भाजपा सरकार पर लगातार सवाल खड़े किए। इस अखबार ने तथ्यों के साथ इस बात को सामने लाया कि गुजरात सरकार मौत के जो आंकड़े दे रही है, उससे कई गुना अधिक लोगों की जान कोरोना महामारी की वजह से गई है। जबकि दिव्य भास्कर ने बहुत लंबे समय तक गुजरात में नरेंद्र मोदी के पक्ष में खड़े रहने वाले अखबार की पहचान कायम रखी लेकिन अब इसका रुख बदल गया है।

दैनिक भास्कर ने मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में भी कोरोना महामारी से संबंधित ऐसी सच्चाइयों को सामने लाने का काम किया जिससे मोदी सरकार और प्रदेश की सरकार लगातार असहज होती रही। सबसे पहले तो दैनिक भास्कर ने भोपाल में शवों के अंतिम संस्कार से संबंधित तस्वीर पहले पन्ने पर प्रकाशित करके यह साबित किया कि मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार भोपाल में मौत के जो आंकड़े दे रही है, उससे कहीं अधिक लोगों की मौत कोरोना की वजह से हो रही है। इसके बाद दैनिक भास्कर ने उत्तर प्रदेश के 17 जिलों में अपने 30 संवाददाताओं को अलग-अलग गंगा घाटों पर भेजकर यह तथ्य लोगों के सामने लाया कि कैसे पूरे उत्तर प्रदेश में कोरोना से मरने वाले लोगों के शवों को गंगा में प्रवाहित किया जा रहा है।

इस बीच कुछ मीडिया संस्थान सरकार के समर्थन में खुलकर खड़े हो गए। विश्व में सबसे अधिक बिक्री का दावा करने वाले समाचारपत्र दैनिक जागरण ने सरकार के पक्ष में जमकर मुहिम चलाई। जब गंगा और दूसरी नदियों में कोरोना की वजह से मरे लोगों की लाश बहने की खबर आने लगी तो दैनिक जागरण ने कई रिपोर्ट प्रकाशित करके यह बताने की कोशिश की कि हिंदू धर्म परंपरा में पहले से भी ऐसा किया जाता है और लोग मजबूरी में नहीं बल्कि जान-बूझकर लाशों को नदी में प्रवाहित कर रहे हैं। दैनिक जागरण ने बाकायदा पुरानी तस्वीरों को प्रकाशित करके यह साबित करने की कोशिश की कि पहले भी प्रयागराज में गंगा किनारे शवों के दफनाया जाता था और इस साल इनकी संख्या में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसी खबर को ट्विट किया और दूसरे मीडिया संस्थानों की उन खबरों पर सवाल उठाया जिसमें कहा जा रहा था कि गंगा में शवों को बहाया जा रहा है।

कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बीच में ही इस अखबार ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का साक्षात्कार प्रकाशित किया। इसमें योगी आदित्यनाथ ने दावा किया कि कोरोना के खिलाफ जंग में उनकी सरकार ने जीत हासिल की है और इसी तरह से वे अगले साल की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी जीत हासिल करेंगे। जबकि उत्तर प्रदेश में कोरोना संकट का किस तरह से कुप्रबंधन किया गया, यह सबने देखा। बहुत सारे लोगों की जान सिर्फ इसलिए गई कि उन्हें समय पर आॅक्सिजन नहीं मिल पाया। कोरोना संकट के प्रबंधन में योगी आदित्यनाथ सरकार की नाकामी किसी से छिपी हुई नहीं है।

योगी आदित्यनाथ के इस साक्षात्कार पर वरिष्ठ पत्रकार अजित अंजुम ने अपने यूट्यूब चैनल पर कड़ी टिप्पणी की। उन्होंने इस साक्षात्कार की तुलना प्रधानमंत्री मोदी के उस साक्षात्कार से की जो अभिनेता अक्षय कुमार ने लिया था। अजीत अंजुम ने कहा कि जिस तरह के बेतुके सवाले अक्षय कुमार के इंटरव्यू में पूछे गए थे, उसी तरह के सवाल दैनिक जागरण के वरिष्ठ लोगों ने पत्रकार होने के बावजूद योगी आदित्यनाथ से पूछे।

सोशल मीडिया पर भी मोदी सरकार के खिलाफ माहौल बनने लगा है। ट्विटर से लेकर फेसबुक और वाॅट्सएैप का सबसे सही ढंग से राजनीतिक इस्तेमाल नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी भाजपा ने ही किया है। लेकिन आज इन सोशल मीडिया कंपनियों की विश्वसनीयता को लेकर मोदी सरकार सवाल उठा रही है। कुछ समय पहले तक जब ये कंपनियां अपने सोशल मीडिया प्लेटफाॅर्म का इस्तेमाल नरेंद्र मोदी के पक्ष में कर रही थीं तो इनकी विश्वसनीयता को लेकर सरकार को इतनी चिंता नहीं हो रही थी। बल्कि मोदी सरकार इन्हें डिजिटल इंडिया और सुशासन से जोड़कर प्रस्तुत करने की कोशिश कर रही थी। हालांकि, उस वक्त भी कुछ लोग ऐसे थे जो सोशल मीडिया के खतरों को लेकर सरकार और समाज को आगाह कर रहे थे और सोशल मीडिया को दोधारी तलवार बता रहे थे। 2019 में प्रकाशित ‘फेसबुक का असली चेहरा’ पुस्तक में विस्तार से यह बताया गया कि सोशल मीडिया किस तरह से लोकतंत्र के लिए खतरा बन रहा है। लेकिन उस वक्त इन बातों पर सरकार इस वजह से ध्यान नहीं दे रही थी कि सोशल मीडिया का सबसे अधिक राजनीतिक फायदा उसे ही मिल रहा था।

आज यही सोशल मीडिया कोरोना महामारी के बाद मोदी सरकार के खिलाफ खड़ा नजर आ रहा है। ऑक्सीज़न से लेकर अस्पताल के बेड और अन्य जरूरी  सेवाओं की गुहार जिस तरह से लोगों ने सोशल मीडिया के जरिए लोगों ने इस संकट के दौरान लगाई, उससे मोदी सरकार लगातार असहज होते रही। क्योंकि सरकार जहां सच को दबाने की कोशिश कर रही थी, वहीं सोशल मीडिया के जरिए देश की जनता सच्चाई को सामने ला रही थी। मोदी सरकार के मंत्रियों ने ट्विटर को कई बार सार्वजनिक तौर पर चेतावनी दी। लेकिन इसके बावजूद आजकल हर दिन नरेंद्र मोदी के खिलाफ कोई न कोई हैशटैग ट्विटर पर ट्रेंड करते रहता है। जब चेतावनियों से भी बात नहीं बनी तो दिल्ली पुलिस ने ट्विटर के दिल्ली और गुड़गांव में स्थिति कार्यालयों पर जाकर नोटिस दिया। सरकार और ट्विटर के बीच अब भी टकराव जारी है। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा के ट्विट को ट्विटर ने मैनिपुलेटेड मीडिया कहकर हटाया और इसके बाद से लगातार भाजपा की ओर से ट्विटर पर हमले किए जा रहे हैं।

इसके बावजूद ट्विटर पर मोदी सरकार और अन्य भाजपा सरकारों की आलोचना कम नहीं हो रही है। क्योंकि कोरोना महामारी के सरकार कुप्रबंधन की पीड़ितों की संख्या इतनी अधिक है कि इनकी आवाज को चाहकर भी सरकार नहीं दबा पा रही है। ऐसे लोगों की आवाज को दबाना ट्विटर के लिए भी आसान नहीं है। लेकिन सरकार ने जिस तरह से ट्विटर पर दबाव बनाया है, उससे हर किसी के जेहन में यही सवाल उठ रहा है कि जब तक ट्विटर पर सब कुछ मोदी के पक्ष में चल रहा था, तब तक यह माध्यम सही था लेकिन जैसे ही इस पर मोदी के खिलाफ माहौल बनने लगा तो ट्विटर देशद्रोही हो गया।

दरअसल, मोदी सरकार के कार्यकाल में हमेशा यह देखा गया कि जिस भी व्यक्ति या संगठन ने सरकार के कामकाज की आलोचना की है और उसे सरकार, भाजपा और इनके समर्थकों ने मिलकर देशद्रोही घोषित करने की कोशिश की है। अब यही काम ट्विटर जैसे सोशल मीडिया कंपनियों के लिए किया जा रहा है। लेकिन यहां यह समझना जरूरी है कि कभी मोदी के पक्ष में खड़े रहने वाले मीडिया संस्थान और सोशल मीडिया प्लेटफाॅर्म आज अगर उनके खिलाफ खड़े दिख रहे हैं तो कहीं न कहीं जमीनी स्तर पर आम जनता का नरेंद्र मोदी से मोहभंग हो रहा है। कोविड महामारी के कुप्रबंधन से बहुत सारे लोगों ने अपने परिजनों या करीबियों को खोया है और इन्हीं लोगों का गुस्सा सोशल मीडिया प्लेटफाॅर्म और मीडिया संस्थानों के जरिए सामने आ रहा है। 

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  • Authorship: Cyril Sam and Paranjoy Guha Thakurta
  • Publisher: Paranjoy Guha Thakurta
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