एक नया अवसर है कोर्ट का ये फैसला

विभिन्न केंद्र सरकारों द्वारा वर्ष 1993 से 2010 के दौरान आवंटित की गई 214 कोयला खदानों का आवंटन निरस्त करने के सर्वोच्च अदालत के फैसले का भारतीय अर्थव्यवस्था पर दूरगामी असर पड़ेगा। इससे घरेलू कोयले की आपूर्ति में बाधा आएगी। यदि हम अपने बिजली उत्पादन पर बुरा असर नहीं पड़ने देना चाहते हैं तो हमें कोयले के आयात को बढ़ाना भी पड़ सकता है। फिर भी सुप्रीम कोर्ट का फैसला हमें अवसर प्रदान करता है कि हम देश में कोयला खनन की भ्रष्ट व अपारदर्शी प्रणाली को दुरुस्त कर सकें।

यहां यह जरूर कहा जाना चाहिए कि कोयला खनन से घोटालों का लंबे समय से चोली-दामन का साथ रहा है। एक अरसे से भारत में कोयला खनन देश की राजनीतिक-आर्थिकी में व्याप्त गड़बड़ियों का प्रतिमान बना हुआ है। 1970 के दशक के प्रारंभ में इंदिरा गांधी की सरकार ने कोयला खनन के अवैज्ञानिक तौर-तरीकों और निजी खननकर्ताओं द्वारा मजदूरों के अमानवीय शोषण की निरंतर खबरों के बाद कोयला खनन का राष्ट्रीयकरण कर दिया था। पर इसके बाद भी कानूनों का खुलेआम उपहास उड़ाने की प्रवृत्ति खत्म नहीं हुई। ज्यादा से ज्यादा कोयला खनन करने के लिए घने जंगलों और उपजाऊ कृषि भूमियों को स्थानीय रहवासियों की पूर्ण स्वीकृति के बिना उनसे ले लिया गया, जबकि वे अपनी आजीविका के लिए ऐसी भूमियों और वनक्षेत्रों पर निर्भर थे।

सर्वोच्च अदालत द्वारा 25 अगस्त को दिए गए निर्णय में जिन 218 कोयला खदानों के आवंटन को अवैध घोषित किया गया था, उनमें से अधिकतर का आवंटन यूपीए1 सरकार के दौरान हुआ था। उसके बाद जब अदालत ने इस हफ्ते 214 कोयला खदानों के आवंटन को रद्द करने का फैसला किया तो अनेक औद्योगिक संस्थाओं सहित वित्तीय अखबारों ने भी इस पर रोष जताया। इसका कारण यह है कि अदालत के फैसले के बाद कंपनियों को न केवल खनन बंद करना होगा, बल्कि अवैध रूप से खनन किए गए प्रति टन कोयले पर 295 रुपए का हर्जाना भी चुकाना होगा। इससे सरकार को अनुमानित रूप से 10 हजार करोड़ रुपयों की आय हो सकती है।

सर्वोच्च अदालत के फैसले से जिन कंपनियों को सर्वाधिक नुकसान पहुंचेगा, वे हैं जिंदल स्टील एंड पॉवर लिमिटेड, जेपी समूह और हिंडल्को इंडस्ट्रीज, जो कि कुमारमंगलम बिड़ला के आदित्य बिड़ला समूह का हिस्सा है। जिंदल स्टील एंड पॉवर लिमिटेड और हिंडल्को इंडस्ट्रीज को क्रमश: 1800 और 600 करोड़ रुपयों का हर्जाना चुकाना पड़ सकता है। इसके अलावा मॉनेट इस्पात और उषा मार्टिन जैसी फर्मों पर भी इस निर्णय का नकारात्मक असर पड़ेगा। हालांकि यहां अनिल अंबानी की रिलायंस पॉवर को भाग्यशाली कहा जा सकता है, क्योंकि मध्यप्रदेश के सासन में मेगा पॉवर प्लांट के लिए कंपनी की दो कोयला खदानों को रद्द नहीं किया गया है।

कोलगेट घोटाले में सीबीआई द्वारा की जा रही विभिन्न् जांचों में से एक का सरोकार इससे भी है कि क्या जिंदल स्टील एंड पॉवर लिमिटेड द्वारा पूर्व कोयला राज्यमंत्री दसारी नारायण राव द्वारा संचालित फर्मों से वित्तीय सौदे किए गए थे। ऐसी और भी कई महत्वपूर्ण शख्सियतों के नाम सामने आए हैं, जो कोयला खनन करने वाली निजी कंपनियों के प्रमोटरों और संचालकों से जुड़े हैं। इनमें कांग्रेस सांसद विजय दर्डा, महाराष्ट्र के शिक्षा मंत्री राजेंद्र दर्डा, पूर्व खाद्य प्रसंस्करण राज्यमंत्री सुबोधकांत सहाय और पूर्व कोयला राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल, संतोष बगरोदिया आदि शामिल हैं। बगरोदिया के भाई की कंपनी को भी एक कोयला खदान आवंटित की गई थी। दसारी नारायण राव के अलावा जो अन्य राजनेता कथित रूप से कोलगेट घोटाले में संलिप्त रहे हैं, उनमें यूपीए सरकार में सूचना प्रसारण राज्यमंत्री रह चुके द्रमुक के एस. जगतरक्षकन शामिल हैं। हालांकि ऐसा नहीं है कि केवल कांग्रेस पार्टी और द्रमुक जैसे उनके सहयोगी रह चुके दलों के नेताओं के नाम ही इस घोटाले में उजागर हुए हैं। जिन फर्मों को कोयला खदानें आवंटित की गई थीं, उनमें से एक से भाजपा के राज्यसभा सांसद अजय संचेती का नाम भी जुड़ा है। कोयला खदानों के लिए लीज प्राप्त करने वाली अनेक कंपनियां तो ऐसी भी थीं, जिनका बिजली, स्टील या सीमेंट के उत्पादन से कोई लेना-देना ही नहीं था।

कोयला खदानों के आवंटन को निरस्त करने से अनेक वित्तीय संस्थानों के नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स यानी फंसे हुए कर्जों में भी इजाफा हो सकता है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि सर्वोच्च अदालत के इस फैसले से केंद्रीय महत्व के बुनियादी ढांचा क्षेत्र को कुछ समय तक उथल-पुथल का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन इससे राजनेताओं और उनके साथ मिलीभगत करने वाले कारोबार-जगत के लोगों को यह सख्त संदेश भी जाएगा कि कानून का राज सबसे ऊपर है। अगस्त 2012 में कैग ने खुलासा किया था कि 'स्क्रीनिंग कमेटी" ने अनेक कंपनियों को मनमानीपूर्ण तरीके से कोयला खदानों में खनन करने का लाइसेंस दे दिया था, जिससे सरकारी खजाने को खासा नुकसान हुआ। कैग ने सरकारी खजाने को हुए नुकसान का अनुमान लगाते हुए उसे 1.8 लाख करोड़ आंका था।

मई 2004 में प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद डॉ. मनमोहन सिंह ने अनुशंसा की थी कि कोयला खदानों का आवंटन सार्वजनिक नीलामी प्रक्रिया के जरिए पारदर्शितापूर्ण तरीके से होना चाहिए, लेकिन सरकार को अपने प्रधानमंत्री की ही अनुशंसाओं पर अमल करने में छह साल लग गए और नए कानून बनाने में उसने दो और वर्षों का समय लिया। सरकार द्वारा कोयला खनन को निजी क्षेत्र के लिए तो खोल दिया गया, लेकिन अभी तक इसके लिए कोई वैधानिक नियामक प्राधिकरण नहीं गठित किया जा सका है। क्या अब हम उम्मीद करें कि सर्वोच्च अदालत के ताजा फैसले के बाद सत्ता में बैठे लोग देश के बेशकीमती प्राकृतिक संसाधनों का भ्रष्ट और मनमानीपूर्ण तरीके से आवंटन करने से पहले हजार बार सोचेंगे, क्योंकि उन संसाधनों पर पहला हक देशवासियों का है?

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How legal harassment by corporates is shackling reportage and undermining democracy in India
 
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